3000 वर्ष पश्चात शैवशिद्धांत पर आधारित यह प्रथम मंदिर होगा। सनातन सनस्कृति की आलौकिक दिव्यता और भव्यता इस मंदिर में मूर्तिमान होगीं। 3000 वर्ष पश्चात इस मंदिर में सर्वप्रथम धर्मचक्र की स्थापना होगी, जो कि सनातन धर्म और सनातन संस्कृति का मूल स्रोत तथा मूल आधार है।
इस मंदिर में उपस्थिति मात्र से सनातन धर्म के मूल शिद्धांतें तथा जीवन के मूल उद्गम को प्रत्यक्ष अनुभव किया जा सकेगा।
प्राचीन भारतिय शिक्षा पद्दति पर आधारित इस विश्वविद्यालय में भारत तथा समस्त विश्व से आकर विद्यार्थी शिवविज्ञान तथा अन्य प्राचीन भारतिय विद्याओं में शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे॥
तथा विश्वविद्यालय के द्वारा प्रशिक्षित आचार्य भारत तथा संपूर्ण विश्व में जाकर शिवविज्ञान तथा अन्य सनातन शास्त्रों की शिक्षा प्रदान करेंगे
3000 वर्ष पश्चात विश्ववीजय की संकल्पना पर आधारित इस विश्वविद्यालय में प्रथम बार शिवविज्ञान की शिक्षा व्यवस्था का शुभारंभ किया जाएगा।
वस्तुतः सनातन संस्कृति परमेश्वर उद्भूत अमृत प्रवाह है जिसका आधार सनातन धर्म है। 3000 वर्ष पूर्व से ही सनातन धर्म और संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है। जो कि
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